✦ खजुराहो के संरक्षित मंदिर से जुड़ा मामला, ASI की अनुमति के बिना नहीं हो सकता बदलाव
🔹 मामला क्या है
मध्य प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध खजुराहो मंदिर समूह के एक प्राचीन मंदिर में भगवान विष्णु की एक मूर्ति स्थापित है। समय के साथ यह मूर्ति खंडित हो चुकी है। एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर मांग की कि खंडित मूर्ति को हटाकर उसकी जगह नई मूर्ति स्थापित की जाए, ताकि श्रद्धालु पूर्ण रूप से दर्शन कर सकें।
🔹 सुप्रीम कोर्ट की सख़्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने याचिका को खारिज करते हुए कहा,
“अगर आप मानते हैं कि यह भगवान का मंदिर है तो भगवान से ही कहिए कि वे ख़ुद इसे ठीक करें। अदालत इस मामले में दख़ल नहीं देगी।”
बेंच ने स्पष्ट किया कि धार्मिक आस्थाओं के मामलों में, विशेष रूप से तब जब यह किसी पुरातात्विक धरोहर स्थल से जुड़ा हो, अदालतें दख़ल नहीं कर सकतीं।
🔹 कानूनी पृष्ठभूमि
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के नियमों के अनुसार किसी भी संरक्षित स्मारक या धरोहर स्थल पर बिना अनुमति किसी भी तरह का बदलाव, नई मूर्ति की स्थापना या पुरानी मूर्ति को बदलना वर्जित है। कोर्ट ने इस प्रावधान का हवाला देते हुए कहा कि कानून सभी पर समान रूप से लागू होता है।
🔹 धरोहर संरक्षण बनाम आस्था
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि धरोहर स्थलों पर धार्मिक या निजी आस्था के आधार पर बदलाव नहीं किया जा सकता। ऐसे स्थानों को उनकी मूल स्थिति में ही संरक्षित रखना जरूरी है, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी उनका वास्तविक स्वरूप देख सकें।
🔹 ASI की भूमिका
खजुराहो के मंदिर समूह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं। इनकी देखरेख और संरक्षण का ज़िम्मा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पास है। कोई भी परिवर्तन, चाहे वह धार्मिक हो या संरचनात्मक, ASI की लिखित अनुमति के बिना नहीं हो सकता।
🔹 निर्णय का महत्व
- धार्मिक आस्था और कानूनी व्यवस्था के बीच संतुलन बनाए रखने का संदेश।
- संरक्षित धरोहर स्थलों की मूल स्थिति को बचाए रखने पर जोर।
- अदालतों द्वारा कानून को धार्मिक भावनाओं से ऊपर रखने की मिसाल।
🔹 लोगों की प्रतिक्रियाएं
इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर भी चर्चा तेज़ हो गई है। कुछ लोगों ने कोर्ट के रुख़ को सही ठहराते हुए कहा कि धरोहर स्थलों की मूल संरचना से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। वहीं कुछ लोगों ने इसे श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला बताया।
🔹 निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बताता है कि धार्मिक स्थल चाहे कितने भी महत्वपूर्ण हों, अगर वे संरक्षित धरोहर की श्रेणी में आते हैं तो उनके साथ कानून के अनुसार ही व्यवहार होगा। अदालतें आस्था पर नहीं, बल्कि संविधान और कानून पर चलेंगी।
