भारतीय-अमेरिकी: “नौकरी छीनने वाले” नहीं, बल्कि अवसर बनाने वाले

Sanskriti Vani
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अमेरिका में हर कुछ साल बाद यह धारणा उठती है कि भारतीय मूल के लोग अमेरिकी नागरिकों की नौकरियाँ छीन रहे हैं। मंदी, बेरोज़गारी या वेतन ठहराव के दौर में यह आरोप और तेज़ हो जाता है। लेकिन आधिकारिक आँकड़े, वीज़ा नियम और आर्थिक शोध बताते हैं कि हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। भारतीय-अमेरिकी वहाँ काम करते हैं जहाँ कुशल कर्मचारियों की कमी होती है और कई बार खुद रोज़गार भी पैदा करते हैं।





1️⃣ धारणा कैसे बनती है

  • आर्थिक मंदी और बेरोज़गारी: इतिहास गवाह है कि 1970–80 के दशक में मेक्सिकन और लैटिनो मज़दूरों को दोष दिया गया; 1990 के बाद एशियाई (ख़ासकर भारतीय और चीनी) आईटी प्रोफेशनल्स को।
  • मीडिया और राजनीति: नेता और मीडिया “बाहरी लोग नौकरियाँ ले रहे हैं” वाला भावनात्मक कार्ड खेलते हैं। इससे ग़ुस्सा भड़कता है और तथ्य पीछे रह जाते हैं।
  • दृश्यता का भ्रम: किसी छोटे समूह का किसी खास पेशे में ज्यादा दिखना यह भ्रम पैदा करता है कि वे हर जगह हावी हैं।

2️⃣ भारतीय-अमेरिकी कौन हैं और कहाँ काम करते हैं

  • जनसंख्या में हिस्सा: अमेरिकी जनगणना के मुताबिक भारतीय मूल के लोग कुल आबादी का ~1.5% हैं।
  • उच्च कौशल वाले क्षेत्र: आईटी, डेटा साइंस, हेल्थकेयर, इंजीनियरिंग, रिसर्च आदि। यह वे क्षेत्र हैं जहाँ स्थानीय कर्मचारियों की कमी पहले से है।
  • शिक्षा स्तर: पीयू रिसर्च सेंटर के अनुसार भारतीय-अमेरिकी आबादी में 75% से अधिक स्नातक या उससे ऊँची डिग्री वाले हैं, जबकि अमेरिकी औसत ~33% है।
  • नौकरी देने वाले भी: स्टार्टअप्स, होटल, गैस स्टेशन, रिटेल जैसे हज़ारों व्यवसाय भारतीय-अमेरिकी चला रहे हैं।

(ग्राफ़ का उदाहरण: भारतीय-अमेरिकी शिक्षा स्तर बनाम अमेरिकी औसत)


3️⃣ “नौकरी छीनना” – हकीकत क्या है

  • क़ानूनी व्यवस्था: H-1B वर्क वीज़ा या ग्रीन कार्ड तभी मिलता है जब नियोक्ता यह साबित करे कि उस पद के लिए अमेरिकी उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं।
  • आउटसोर्सिंग बनाम इमिग्रेशन: आलोचना ज़्यादातर भारतीय आईटी कंपनियों (Infosys, TCS, Wipro आदि) की ऑफ़शोर सर्विसेस को लेकर होती है। यह अमेरिका के अंदर भारतीय कर्मचारियों की उपस्थिति से अलग मामला है।
  • आर्थिक असर: नेशनल फ़ाउंडेशन फ़ॉर अमेरिकन पॉलिसी (NFAP) की रिपोर्ट के अनुसार इमिग्रेंट्स अमेरिकी स्टार्टअप्स के 55% से अधिक “यूनिकॉर्न” (बिलियन डॉलर वैल्यू वाली कंपनियों) के संस्थापक हैं।

(ग्राफ़ का उदाहरण: इमिग्रेंट्स द्वारा बनाए गए स्टार्टअप्स का प्रतिशत)


4️⃣ अमेरिकी अर्थव्यवस्था में योगदान

  • टैक्स व इनोवेशन: इमिग्रेंट्स समग्र अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ाते हैं, टैक्स देते हैं और नई तकनीक विकसित करते हैं।
  • हेल्थकेयर में भूमिका: कोविड-19 के दौरान भारतीय-अमेरिकी डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने अग्रिम मोर्चे पर काम किया।
  • रोज़गार निर्माण: इंडियन-अमेरिकन होटल ओनर्स एसोसिएशन के अनुसार अमेरिका में हर 5 में से 1 होटल भारतीय मूल के लोगों के स्वामित्व में है, जो लाखों स्थानीय कर्मचारियों को रोज़गार देता है।



5️⃣ निष्कर्ष

भारतीय-अमेरिकी “नौकरियाँ छीनने” के बजाय कमी पूरी कर रहे हैं, नए अवसर पैदा कर रहे हैं और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मज़बूत बना रहे हैं। “नौकरी छीनने” वाली धारणा राजनीतिक और भावनात्मक हथकंडा है, न कि तथ्यों पर आधारित।

📌 संक्षेप में: भारतीय-अमेरिकी अमेरिका के लिए रोज़गार-निर्माता हैं, न कि रोज़गार-छीनने वाले


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