भूमिका: लद्दाख का आंदोलन और अचानक हुई हिंसा
लद्दाख, जो 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग कर केंद्र शासित प्रदेश (UT) बना, पिछले कुछ सालों से पूर्ण राज्य के दर्जे और संवैधानिक सुरक्षा की माँग को लेकर आंदोलनरत है। स्थानीय प्रतिनिधि संगठन Leh Apex Body (LAB) और Kargil Democratic Alliance (KDA) लगातार यह तर्क दे रहे हैं कि बिना राज्य का दर्जा और बिना छठी अनुसूची की सुरक्षा के, लद्दाख की पहचान, संस्कृति और रोजगार पर खतरा मंडराएगा।
10 सितंबर 2025 को पर्यावरणविद और समाजसेवी सोनम वांगचुक ने इसी मुद्दे पर भूख हड़ताल शुरू की। शुरुआत शांतिपूर्ण रही, लेकिन 23-24 सितंबर को हालात अचानक बिगड़ गए। पथराव, आगजनी और पुलिस फायरिंग में चार लोगों की मौत और दर्जनों घायल होने से यह आंदोलन राष्ट्रीय बहस का विषय बन गया।
लद्दाख की राजनीतिक पृष्ठभूमि
2019 में जब अनुच्छेद 370 हटाया गया और लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, तब स्थानीय जनता ने शुरुआत में स्वागत किया। लोगों को उम्मीद थी कि केंद्र का सीधा नियंत्रण विकास की गति को तेज करेगा। लेकिन समय बीतने के साथ शिकायतें बढ़ीं —
- रोजगार के अवसर सीमित रहे।
- भूमि और संसाधनों पर बाहरी दखल का डर गहराया।
- लेह-कारगिल के बीच राजनीतिक संतुलन पर सवाल उठे।
इन्हीं कारणों से राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा की माँग तेज होती गई।
सोनम वांगचुक की भूख हड़ताल: शांतिपूर्ण शुरुआत
10 सितंबर को सोनम वांगचुक ने NDS मेमोरियल ग्राउंड, लेह में भूख हड़ताल शुरू की। उनके साथ स्थानीय संगठनों ने समर्थन दिया।
मांगें स्पष्ट थीं:
- लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा।
- छठी अनुसूची में शामिल कर आदिवासी अधिकारों की संवैधानिक गारंटी।
- लेह और कारगिल को अलग-अलग लोकसभा सीटें।
- स्थानीय युवाओं को नौकरियों और संसाधनों पर प्राथमिकता।
शुरुआत में माहौल शांतिपूर्ण था। लोग धरने में बैठते, नारे लगाते और शांतिपूर्वक समर्थन देते। लेकिन धीरे-धीरे तनाव बढ़ने लगा।
बंद का ऐलान और हालात का बिगड़ना
23 सितंबर को अनशन पर बैठे दो बुजुर्गों की तबीयत बिगड़ी। इस घटना ने आंदोलनकारियों में आक्रोश पैदा कर दिया। अगले ही दिन युवाओं ने “लेह बंद” का आह्वान किया।
24 सितंबर की सुबह हजारों लोग सड़कों पर उतरे। देखते-ही-देखते स्थिति बेकाबू हो गई।
- भीड़ ने बीजेपी कार्यालय, स्वायत्त परिषद दफ्तर और कुछ सरकारी इमारतों पर हमला किया।
- पुलिस वाहनों में आग लगा दी गई।
- सुरक्षाबलों पर पथराव हुआ।
पुलिस ने जवाबी कार्रवाई में लाठीचार्ज, आंसू गैस और फायरिंग की। परिणामस्वरूप चार लोगों की मौत और दर्जनों घायल हुए।
सरकार का आरोप: कांग्रेस और वांगचुक जिम्मेदार
हिंसा के बाद केंद्र और स्थानीय प्रशासन ने आंदोलन की दिशा को लेकर गंभीर सवाल उठाए।
- गृह मंत्रालय का आरोप है कि सोनम वांगचुक ने अपने भाषणों में “अरब स्प्रिंग” और “नेपाल के आंदोलन” का जिक्र कर भीड़ को उकसाया।
- बीजेपी नेताओं ने दावा किया कि स्थानीय कांग्रेस पार्षद और कार्यकर्ता हिंसा में शामिल थे।
- उपराज्यपाल कार्यालय ने कहा कि यह हिंसा “पूर्व नियोजित साजिश” का नतीजा है, ताकि 6 अक्टूबर को प्रस्तावित सरकार-प्रतिनिधि बैठक से पहले हालात बिगाड़े जा सकें।
कांग्रेस का बचाव और विपक्ष का पलटवार
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने आरोपों को सिरे से खारिज किया। उनका कहना है कि:
- “कांग्रेस इतनी ताकतवर नहीं कि हजारों युवाओं को सड़कों पर उतार सके।”
- हिंसा स्थानीय युवाओं की हताशा और गुस्से का नतीजा थी।
- सरकार खुद आंदोलन को सही ढंग से संभालने में विफल रही।
सोनम वांगचुक ने भी हिंसा की निंदा करते हुए कहा कि उनका आंदोलन हमेशा अहिंसक रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि “सरकार आंदोलन की असली मांगों से ध्यान भटकाने के लिए विपक्ष पर ठीकरा फोड़ रही है।”
प्रशासन की सख्ती और जांच
हिंसा के बाद लेह और आसपास के इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया। इंटरनेट सेवाएँ अस्थायी रूप से बंद कर दी गईं। पुलिस ने कई जगहों पर छापेमारी की और संदिग्धों को हिरासत में लिया।
गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि गहन जांच होगी और जिन लोगों ने हिंसा भड़काई, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। साथ ही, यह भी कहा गया कि सरकार संवाद के रास्ते पर अडिग है।
जनता की आवाज़: विकास बनाम पहचान
लद्दाख की आम जनता के बीच इस मुद्दे पर मिश्रित भावनाएँ हैं।
- एक वर्ग चाहता है कि केंद्र सीधे नियंत्रण में रखे ताकि बड़े प्रोजेक्ट्स आसानी से पूरे हों।
- दूसरा वर्ग स्थानीय संसाधनों और संस्कृति की सुरक्षा को लेकर चिंतित है।
कई युवा मानते हैं कि रोजगार और शिक्षा में असमानता उनके गुस्से का सबसे बड़ा कारण है।
आंदोलन की दिशा और भविष्य की संभावनाएँ
वांगचुक ने 15 दिन बाद भूख हड़ताल तोड़ते हुए शांति की अपील की। उन्होंने कहा कि आंदोलन “संवाद और लोकतांत्रिक तरीके” से जारी रहेगा।
अब सवाल यह है कि:
- क्या केंद्र सरकार 6 अक्टूबर की प्रस्तावित बैठक में कोई ठोस आश्वासन देगी?
- क्या लद्दाख को राज्य का दर्जा या छठी अनुसूची की सुरक्षा मिलेगी?
- क्या हिंसा की आड़ में आंदोलन कमजोर पड़ जाएगा?
निष्कर्ष: आग के पीछे राजनीति?
लद्दाख का आंदोलन शुरू हुआ था शांतिपूर्ण भूख हड़ताल से, लेकिन यह अचानक आगजनी और पथराव में बदल गया।
केंद्र का आरोप है कि इसमें कांग्रेस और कुछ स्थानीय नेताओं का हाथ है, जबकि विपक्ष और आंदोलनकारी इसे युवाओं की हताशा का नतीजा बता रहे हैं।
सच्चाई जो भी हो, इतना तय है कि लद्दाख का यह आंदोलन केवल “राजनीतिक दांवपेंच” नहीं है, बल्कि यहाँ के लोगों की पहचान, रोजगार और भविष्य से गहराई से जुड़ा सवाल है।
