लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आरएसएस की प्रशंसा और विरोधियों के लिए जवाब
भूमिका
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी लाल किले से राष्ट्र को संबोधित करते हैं, तो उनकी हर बात पर पूरे देश की नज़र रहती है। इस बार उनके भाषण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का ज़िक्र हुआ, जिसकी उन्होंने सराहना की। यह बात जहाँ उनके समर्थकों को गर्व से भर देती है, वहीं विपक्ष और आलोचकों को खटकती है। सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री का लाल किले से आरएसएस की तारीफ़ करना सही है? विरोध करने वालों को इस पर क्या जवाब दिया जा सकता है?
आरएसएस की ऐतिहासिक भूमिका
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में हुई थी। यह संगठन किसी राजनीतिक दल के रूप में नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक संस्था के रूप में उभरा। आजादी से पहले से लेकर आज तक आरएसएस ने राष्ट्र निर्माण की दिशा में शिक्षा, सेवा, अनुशासन और राष्ट्रीय एकता को मज़बूत करने में अपनी भूमिका निभाई है।
प्रधानमंत्री का लाल किले से ज़िक्र क्यों अहम
लाल किला केवल ईंट-पत्थर की इमारत नहीं है, बल्कि भारत की आज़ादी और गणतंत्र की पहचान है। यहाँ से प्रधानमंत्री हर साल 15 अगस्त को राष्ट्र को संबोधित करते हैं। ऐसे मंच से जब नरेंद्र मोदी आरएसएस की बात करते हैं, तो इसका मतलब है कि वे उस संगठन की सेवा भावना और राष्ट्रप्रेम को मान्यता दे रहे हैं, जिसने वर्षों से समाज को मज़बूत किया है।
विरोधियों की आपत्तियाँ
प्रधानमंत्री के इस बयान पर विरोधियों का कहना है कि लाल किले से भाषण पूरे देश के लिए होता है, न कि किसी विशेष संगठन के लिए। आलोचक यह भी आरोप लगाते हैं कि आरएसएस का एजेंडा सांप्रदायिक है और यह केवल एक विचारधारा का प्रचार है।
विरोधियों को जवाब
प्रधानमंत्री का लाल किले से आरएसएस की तारीफ़ करना किसी विचारधारा का प्रचार नहीं, बल्कि सेवा और राष्ट्रनिर्माण में योगदान की सराहना है। आरएसएस ने कोरोना महामारी से लेकर प्राकृतिक आपदाओं तक में लाखों स्वयंसेवकों के जरिए सेवा कार्य किए। यह किसी राजनीतिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्रहित में किया गया कार्य है।
आरएसएस की सेवा परंपरा
आरएसएस के स्वयंसेवक बिना किसी पहचान या प्रचार के समाज सेवा में जुटे रहते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और आपदा प्रबंधन के क्षेत्रों में उनका काम किसी से छिपा नहीं है। प्रधानमंत्री जब उनकी तारीफ़ करते हैं, तो यह उन अनगिनत कार्यकर्ताओं का सम्मान है जो चुपचाप राष्ट्रहित में काम कर रहे हैं।
लोकतांत्रिक मूल्यों की कसौटी
लोकतंत्र में आलोचना और असहमति स्वाभाविक है। लेकिन आलोचना सिर्फ़ विरोध के लिए करना स्वस्थ परंपरा नहीं है। प्रधानमंत्री पूरे राष्ट्र का नेतृत्व करते हैं। अगर वे लाल किले से आरएसएस जैसे संगठन की बात करते हैं, तो यह उनकी व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय दृष्टि का हिस्सा है।
राजनीतिक बनाम सामाजिक दृष्टिकोण
आरएसएस को कई लोग केवल भाजपा से जोड़कर देखते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि आरएसएस एक सामाजिक संगठन है, जिसने करोड़ों युवाओं को अनुशासन और सेवा का संस्कार दिया है। भाजपा का राजनीतिक अस्तित्व बाद में आया, लेकिन आरएसएस का सामाजिक काम पहले से चलता आ रहा है।
प्रधानमंत्री का संदेश
लाल किले से आरएसएस की तारीफ़ करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह संदेश दिया कि राष्ट्रहित में काम करने वाले हर संगठन की सराहना होनी चाहिए। यह किसी राजनीतिक लाभ का विषय नहीं, बल्कि उस विचार का हिस्सा है कि भारत को मज़बूत करने के लिए सभी को योगदान देना चाहिए।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाल किले से आरएसएस की प्रशंसा पर उठे विरोध को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह विवाद से ज़्यादा राजनीतिक पूर्वाग्रह का परिणाम है। विरोधियों को समझना चाहिए कि आरएसएस का ज़िक्र किसी पार्टी विशेष के लिए नहीं, बल्कि उन लाखों कार्यकर्ताओं के लिए है जो राष्ट्र निर्माण की यात्रा में लगातार काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री का यह कदम समाज और सेवा को सम्मान देने की दिशा में एक सकारात्मक पहल है।
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