जीतन राम मांझी का 81वें जन्मदिन पर बड़ा ऐलान – NDA में सम्मान मिला, लेकिन 15–20 सीटें नहीं मिलीं तो 100 सीटों पर अकेले लड़ेंगे चुनाव

Sanskriti Vani
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पटना में जन्मदिन के मौके पर प्रेस कॉन्फ्रेंस

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने अपने 81वें जन्मदिन पर पटना में आयोजित कार्यक्रम में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस मौके पर उन्होंने कहा कि वे एनडीए के सम्मान और सहयोग के लिए आभारी हैं, लेकिन अगर उनकी पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव में 15–20 सीटों का कोटा नहीं दिया गया तो वे 100 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगे।




एनडीए में मिली ‘इज्ज़त’, लेकिन सीटों पर सौदेबाज़ी की चेतावनी

मांझी ने कहा कि उनकी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, एनडीए के साथ मिलकर बिहार में विकास और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर काम करना चाहती है। उन्होंने जोड़ा, “एनडीए ने हमें सम्मान दिया है, मंत्रीपद भी दिया है, लेकिन पार्टी की मान्यता बनाए रखने के लिए पर्याप्त सीटें जरूरी हैं। अगर हमें 15–20 सीटें नहीं मिलेंगी तो हमें मजबूरी में 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारने पड़ेंगे।”


दलित वोट बैंक में मांझी का प्रभाव

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मांझी का दल बिहार के दलित, महादलित और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं में खास प्रभाव रखता है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी हम ने चार सीटों पर जीत दर्ज की थी और बाद में एनडीए सरकार में शामिल हुए थे। इस कारण मांझी के इस बयान को बीजेपी और जदयू के लिए ‘साफ़ संदेश’ माना जा रहा है।


सीट शेयरिंग में नया समीकरण

बिहार में अगले विधानसभा चुनाव में कुल 243 सीटों पर मतदान होना है। ऐसे में अगर हम पार्टी 15–20 सीटें मांगती है तो यह बीजेपी, जदयू और अन्य सहयोगियों के हिस्से पर असर डालेगा। मांझी के बयान से साफ है कि वे इस बार सीटों को लेकर कोई ‘समझौता’ करने के मूड में नहीं हैं।


81वें जन्मदिन पर ‘राजनीतिक धमाका’

मांझी ने अपना 81वां जन्मदिन मनाते हुए कहा कि वे अब भी पूरी तरह सक्रिय राजनीति में हैं और अपने समर्थकों के साथ राज्य के कोने-कोने में कार्यक्रम करेंगे। उन्होंने कहा, “हमारी पार्टी की ताकत को कम करके नहीं आँका जाए। हम सामाजिक न्याय और गरीबों के हक़ के लिए लड़ते रहेंगे।”


मांझी का राजनीतिक सफर

जीतन राम मांझी का राजनीति में लंबा अनुभव रहा है। वे नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री भी रहे और 2014 में जब नीतीश ने इस्तीफ़ा दिया तो मांझी को मुख्यमंत्री बनाया गया। बाद में वे अलग होकर हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा का गठन कर चुके हैं। उनकी पार्टी अभी एनडीए का हिस्सा है।


गठबंधन की राजनीति में दलित नेतृत्व

मांझी के इस बयान से यह संकेत भी मिलता है कि बिहार में दलित नेतृत्व अब अपनी भूमिका और हिस्सेदारी को लेकर अधिक मुखर हो रहा है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अगर मांझी अलग चुनाव लड़ते हैं तो एनडीए के वोट बैंक पर असर पड़ सकता है, जिसका फायदा विपक्षी गठबंधन को मिल सकता है।


एनडीए के लिए चुनौती

भाजपा और जदयू को यह समझना होगा कि मांझी की पार्टी को साथ रखना क्यों जरूरी है। 2020 के चुनाव में हम ने 7 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 सीटें जीतीं। अब अगर मांझी 100 सीटों पर चुनाव लड़ते हैं तो यह एनडीए के लिए ‘मिनी शॉक’ साबित हो सकता है।


विपक्ष की नज़र

विपक्षी महागठबंधन भी मांझी की बयानबाज़ी पर नज़र रखे हुए है। अगर हम पार्टी अलग होती है तो आरजेडी और कांग्रेस जैसे दल उसे अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर सकते हैं। इससे बिहार में राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल सकता है।


आगे की राह

मांझी ने कहा कि फिलहाल वे एनडीए के साथ हैं और सीट बंटवारे पर चर्चा जारी है। उन्होंने उम्मीद जताई कि भाजपा और जदयू उनकी बात समझेंगे। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि “हमारे लिए पार्टी का अस्तित्व सर्वोपरि है।”


महत्वपूर्ण आंकड़े (स्टैट्स)

  • बिहार विधानसभा की कुल सीटें: 243
  • हम (Hindustani Awam Morcha) की 2020 में जीती सीटें: 4
  • 2020 में हम ने लड़ी सीटें: 7
  • मांझी की वर्तमान मांग: 15–20 सीटें
  • मांझी की चेतावनी: 100 सीटों पर अकेले चुनाव
  • मांझी की उम्र: 81 वर्ष


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