भारत की घटती प्रजनन दर और बढ़ते बुजुर्ग: आने वाले दशकों में क्या बदलेगा?

Sanskriti Vani
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क्या आपने कभी सोचा है कि भारत, जिसे हमेशा युवा देश कहा जाता है, अब धीरे-धीरे "बुजुर्ग समाज" की तरफ बढ़ रहा है?

ताज़ा आंकड़े यही कहानी कह रहे हैं।

👉 भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) अब 1.9 हो गई है, जबकि आबादी को स्थिर रखने के लिए कम से कम 2.1 होना ज़रूरी है।
👉 वहीं, देश की बुजुर्ग आबादी (60+) अब 10% से अधिक हो चुकी है।

इसका मतलब साफ़ है—भारत की जनसंख्या आने वाले दशकों में स्थिर होने के बाद घटने लगेगी।






👶 क्यों घट रही है जन्मदर?

  • शिक्षा और करियर पर बढ़ता फोकस
  • शहरी जीवन और महंगे खर्चे
  • महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और छोटे परिवार की सोच

आजकल की पीढ़ी "क्वालिटी ऑफ लाइफ" को प्राथमिकता देती है, इसलिए ज्यादा बच्चे पालना अब आम सोच नहीं रही।


🌍 दुनिया से क्या सीखें?

  • जापान और दक्षिण कोरिया में तो हालात इतने खराब हैं कि स्कूल बंद हो रहे हैं और गांव खाली हो रहे हैं।
  • चीन भी "वन-चाइल्ड पॉलिसी" के असर से जूझ रहा है।
  • अमेरिका की हालत थोड़ी बेहतर है, लेकिन वहां भी जन्मदर कम है; आप्रवासन (immigration) ही जनसंख्या को संभाल रहा है।

🇮🇳 भारत के लिए दोहरी चुनौती

भारत को आने वाले सालों में दो चीज़ों से जूझना होगा:

  1. कामकाजी उम्र की आबादी घटने लगेगी → यानी आर्थिक विकास पर असर।
  2. बुजुर्गों की संख्या बढ़ेगी → यानी पेंशन, हेल्थकेयर और देखभाल पर बोझ।

फिलहाल भारत के पास "Demographic Dividend" का फायदा उठाने का मौका है, लेकिन ये खिड़की ज्यादा लंबी नहीं है।






🤔 आगे क्या?

अगर भारत अभी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में निवेश करता है, तो आने वाले 20-30 साल आर्थिक विकास के लिए सुनहरा समय हो सकते हैं।
लेकिन अगर मौके गंवा दिए, तो देश को भी यूरोप और एशिया जैसी जनसंख्या संकट से जूझना पड़ सकता है।


👉 सवाल यह है कि क्या भारत समय रहते तैयारी कर पाएगा, या फिर "युवा राष्ट्र" का टैग खोकर बुजुर्ग समाज में बदल जाएगा?



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