लंदन में ‘यूनाइट द किंगडम’ रैली: 1.5 लाख लोगों का सड़कों पर गुस्सा
आव्रजन और सरकार की नीतियों के खिलाफ़ ब्रिटेन का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन
लंदन की सड़कों पर शनिवार को 1.1–1.5 लाख लोग उतर आए। “यूनाइट द किंगडम” नाम की यह रैली फ़ार-राइट एक्टिविस्ट टॉमी रॉबिन्सन के नेतृत्व में हुई। आयोजकों ने इसे “फ्री स्पीच” और “ब्रिटिश संस्कृति” बचाने की मुहिम बताया, लेकिन पुलिस और मीडिया ने इसे “एंटी-इमिग्रेशन” यानी प्रवासी-विरोधी आंदोलन करार दिया।
कैसे शुरू हुई यह रैली
पिछले कुछ महीनों से इंग्लिश चैनल के ज़रिए शरणार्थियों और अवैध प्रवासियों की संख्या बढ़ी है। सरकार के “रवांडा प्लान” जैसी सख़्त नीतियाँ अदालतों में अटक गईं। इस माहौल में रॉबिन्सन और उनके समर्थकों ने “यूनाइट द किंगडम” रैली का आह्वान किया।
लोग क्या चाहते थे
- अवैध आव्रजन पर रोक
- सीमाओं पर सख़्त कार्रवाई
- न्याय व्यवस्था में बदलाव
- “ब्रिटिश कल्चर” की सुरक्षा
आयोजकों ने इसे “देशभक्ति” और “वाक्-स्वतंत्रता” का प्रतीक बताया।
पुलिस के साथ झड़पें
जैसे-जैसे भीड़ बढ़ी, पुलिस और प्रदर्शनकारियों में टकराव हुआ। बैरिकेड्स टूटे, बोतलें फेंकी गईं और कई अधिकारियों को चोटें आईं – कुछ की नाक, दाँत और सिर पर गंभीर चोटें बताई गईं। पुलिस ने दर्जनों लोगों को “violent disorder” और “assault” के आरोप में गिरफ्तार किया।
फ़ार-राइट बनाम अल्पसंख्यक समुदाय
जहाँ समर्थक इसे “ब्रिटेन बचाओ” का संदेश मान रहे हैं, वहीं मुस्लिम, सिख, भारतीय और अन्य प्रवासी समुदाय इसे अपने खिलाफ़ माहौल के रूप में देख रहे हैं। उन्हें डर है कि इससे हेट क्राइम्स और नस्लीय हिंसा बढ़ सकती है।
राजनीतिक असर
इतने बड़े पैमाने की रैली सरकार और विपक्ष दोनों पर दबाव डाल रही है। चुनावी बहस में आव्रजन, सीमा सुरक्षा और “ब्रिटिश पहचान” जैसे मुद्दे और तेज़ होंगे।
मीडिया में प्रतिक्रिया
कुछ चैनल और अख़बार इसे “free speech festival” बता रहे हैं, लेकिन अधिकांश मीडिया इसे “anti-immigration” प्रोटेस्ट के रूप में पेश कर रहा है।
आगे क्या?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर सरकार ने कड़ा कदम नहीं उठाया, तो फ़ार-राइट ग्रुप्स की ताक़त और बढ़ सकती है। वहीं सख़्त कार्रवाई से समर्थकों में गुस्सा और भड़क सकता है।
सारांश
“यूनाइट द किंगडम” रैली ब्रिटेन की सामाजिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण की ताज़ा मिसाल बन गई है। आव्रजन के मुद्दे पर जनता, सरकार और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच खाई गहरी होती दिख रही है।
