AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है। उन्होंने हाल ही में RSS प्रमुख मोहन भागवत के तीन बच्चे संबंधी बयान पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे महिलाओं पर बोझ बताया और ‘फेमिनिस्ट कार्ड’ खेला। लेकिन यह वही ओवैसी हैं, जिन्होंने संसद में जनसंख्या नियंत्रण कानून का पुरजोर विरोध किया था और इसे मुसलमानों के खिलाफ साजिश बताया था। यह लेख ओवैसी की दोगलई, संसद और सड़क पर उनके दोहरे बयान, महिलाओं के अधिकारों पर उनके विरोधाभासी रवैये और सोशल मीडिया पर उठ रही प्रतिक्रियाओं का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
1. RSS प्रमुख का बयान और ओवैसी की प्रतिक्रिया
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में कहा कि “तीन बच्चे वाले परिवारों को भी समाज में सम्मान मिलना चाहिए।” उनका तर्क था कि जनसंख्या नियंत्रण केवल संख्या पर आधारित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक संतुलन से जुड़ा हुआ विषय है। उन्होंने संकेत दिया कि बढ़ती आबादी के बीच एक से दो बच्चों की नीति का पालन करना उचित है, लेकिन तीन बच्चों वाले परिवारों को भी अस्वीकार्य नहीं माना जाना चाहिए।
भागवत के इस बयान के तुरंत बाद AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी सामने आए और उन्होंने RSS पर महिलाओं की आज़ादी छीनने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि “यह फैसला किसी महिला और उसके परिवार का होता है कि उन्हें कितने बच्चे चाहिए, RSS को इसमें दखल देने का हक़ नहीं।” ओवैसी ने इसे फेमिनिस्ट कार्ड में बदलकर महिला स्वतंत्रता की लड़ाई के रूप में पेश करने की कोशिश की।
2. संसद में ओवैसी का विरोध
यही ओवैसी संसद में जनसंख्या नियंत्रण कानून के विरोध में सबसे आगे खड़े दिखाई दिए थे। जब सरकार ने सीमित संसाधनों पर बढ़ती आबादी के दबाव को देखते हुए कानून लाने की बात की, तो ओवैसी ने इसे सीधा मुसलमानों पर हमला बताया। उन्होंने कहा था कि “भारत में मुस्लिम जनसंख्या के बारे में जो अफवाहें फैलाई जा रही हैं, वे झूठी हैं और यह कानून अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए है।”
उन्होंने संविधान और मौलिक अधिकारों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि सरकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता में दखल नहीं दे सकती। दिलचस्प बात यह है कि संसद में वे जनसंख्या नियंत्रण का विरोध कर रहे थे, जबकि बाहर आकर RSS प्रमुख के बयान पर महिला स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं।
3. दोगलापन उजागर
इस घटनाक्रम ने ओवैसी की दोगलई को उजागर कर दिया है। जब सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की बात करती है, तो वे इसे मुस्लिम विरोधी बताते हैं। वहीं जब RSS प्रमुख भागवत परिवार और सामाजिक संतुलन का ज़िक्र करते हैं, तो अचानक वे महिलाओं की स्वतंत्रता के हिमायती बन जाते हैं।
यह दोहरा रवैया यह साबित करता है कि ओवैसी की राजनीति मुद्दों की गहराई से नहीं, बल्कि परिस्थितियों और अवसरों पर आधारित है। वे किसी भी मुद्दे को धर्म या जेंडर की चश्मे से देखने की कोशिश करते हैं ताकि जनता की भावनाओं को भड़काया जा सके और वोटबैंक सुरक्षित रखा जा सके।
4. फेमिनिस्ट कार्ड की राजनीति
ओवैसी का RSS प्रमुख पर हमला केवल राजनीतिक लाभ के लिए था। उन्होंने महिलाओं की आज़ादी और अधिकारों की दुहाई दी, लेकिन जब संसद में त्रिपल तलाक कानून आया था, तब वही ओवैसी मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देकर महिलाओं के हक़ के खिलाफ खड़े दिखाई दिए थे।
त्रिपल तलाक से पीड़ित हजारों मुस्लिम महिलाओं ने राहत की उम्मीद जताई थी, लेकिन ओवैसी ने कहा था कि यह कानून शरीयत और इस्लामी प्रथाओं के खिलाफ है। उस समय उन्होंने महिलाओं की स्वतंत्रता की बात नहीं की। यह विरोधाभास साबित करता है कि ओवैसी का फेमिनिस्ट कार्ड केवल चुनिंदा मौकों पर, राजनीतिक स्वार्थ के लिए खेला जाता है।
5. मुस्लिम समाज और वोटबैंक की राजनीति
ओवैसी की राजनीति हमेशा से अल्पसंख्यक समाज को केंद्र में रखकर चलती रही है। वे हर मुद्दे को “मुस्लिम बनाम हिंदू” का रूप देने की कोशिश करते हैं। संसद में उनका जनसंख्या नियंत्रण कानून का विरोध इसी वजह से था। उनका कहना था कि मुस्लिम समाज को गलत तरीके से ‘तेजी से बढ़ती आबादी’ के रूप में पेश किया जा रहा है।
लेकिन आंकड़े बताते हैं कि मुस्लिम और हिंदू दोनों ही समुदायों में प्रजनन दर में लगातार गिरावट आई है। फिर भी ओवैसी इसे वोटबैंक के लिए इस्तेमाल करते हैं। यही कारण है कि उनकी राजनीति में समाज को जोड़ने के बजाय बांटने का तत्व अधिक दिखाई देता है।
6. संसद और सड़क पर अलग-अलग बयान
ओवैसी की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वे संसद और सड़क पर अलग-अलग बयान देते हैं। संसद में उन्होंने कहा कि “जनसंख्या नियंत्रण कानून असंवैधानिक है,” लेकिन मीडिया से बात करते समय वे कहते हैं कि “महिलाओं पर बोझ डालना गलत है।”
यह दोहरा रवैया उन्हें आलोचकों के निशाने पर ले आता है। यह साफ है कि संसद में वे अपने वोटबैंक को संदेश देना चाहते थे, जबकि बाहर फेमिनिस्ट कार्ड खेलकर एक अलग छवि बनाने की कोशिश कर रहे थे।
7. देशहित बनाम वोटबैंक
जनसंख्या नियंत्रण कानून देशहित का विषय है। भारत जैसे देश में जहाँ रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा और संसाधन सीमित हैं, वहाँ जनसंख्या पर नियंत्रण बेहद ज़रूरी है। लेकिन जब भी यह मुद्दा उठता है, ओवैसी इसे वोटबैंक की राजनीति में बदल देते हैं।
वे कभी इसे धर्म से जोड़ते हैं, कभी महिला स्वतंत्रता से। लेकिन हकीकत यह है कि उनका असली मकसद केवल राजनीति है। अगर वे सचमुच महिलाओं और अल्पसंख्यकों के हितैषी होते, तो संसद में उनके तर्क अलग होते।
8. जनता का सवाल
आम जनता अब सवाल कर रही है – अगर ओवैसी सचमुच महिलाओं के अधिकारों के पक्षधर हैं, तो उन्होंने त्रिपल तलाक कानून का विरोध क्यों किया? क्यों हमेशा वे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का बचाव करते हैं और महिलाओं के हक़ की अनदेखी करते हैं?
यही नहीं, जब बात हिंदू समाज या RSS से जुड़े बयानों की आती है, तो वे फेमिनिस्ट कार्ड खेलते हैं। लेकिन जब उनकी अपनी कौम की महिलाएं अन्याय झेलती हैं, तो वे चुप्पी साध लेते हैं।
9. सोशल मीडिया प्रतिक्रियाएँ
ओवैसी के बयान पर सोशल मीडिया पर जमकर बहस हुई। कई यूजर्स ने लिखा – “जब नौकरी और शिक्षा नहीं मिल रही, तब तीन बच्चे क्यों?” वहीं कुछ लोगों ने ओवैसी को “दोहरा चेहरा” बताया।
एक यूजर ने लिखा: “त्रिपल तलाक पर महिलाओं के अधिकार याद नहीं आए, लेकिन RSS प्रमुख के बयान पर अचानक फेमिनिस्ट बन गए।” यह दर्शाता है कि जनता अब ओवैसी के दोहरेपन को भली-भांति समझ रही है।
10. निष्कर्ष
कुल मिलाकर, असदुद्दीन ओवैसी की राजनीति हर बार विरोधाभासों से भरी दिखाई देती है। संसद में वे जनसंख्या नियंत्रण कानून का विरोध करते हैं, बाहर फेमिनिस्ट कार्ड खेलते हैं। त्रिपल तलाक कानून पर महिलाओं के खिलाफ खड़े रहते हैं, लेकिन RSS प्रमुख पर हमला करते समय महिला स्वतंत्रता का मुद्दा उठाते हैं।
उनकी राजनीति का सार यही है कि वे हालात के हिसाब से बयान बदलते हैं और मुद्दों को असली दिशा से भटका देते हैं। यही कारण है कि जनता और विश्लेषक दोनों उन्हें ‘दोगला नेता’ कहने से पीछे नहीं हटते।
ओवैसी के ताज़ा उद्धरण
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“Who is he to interfere in people's lives? Why are you trying to burden a woman…?” (NDTV)
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“PM Modi spoke of population control in 2019, now suddenly Bhagwat says more children?” (NDTV)
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“यह RSS और BJP की नाकामी है कि वे रोजगार और अवसर नहीं दे पा रहे, अब वे तीन बच्चों की बात कर रहे हैं।” (AajTak)
सोशल मीडिया प्रतिक्रियाएँ
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“त्रिपल तलाक पर महिलाओं के अधिकार याद नहीं आए, RSS पर अचानक फेमिनिस्ट कार्ड?”
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“जनसंख्या नियंत्रण पर संसद में ड्रामा, बाहर आकर महिला स्वतंत्रता का नारा—यह ओवैसी की असली राजनीति है।”
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“जब नौकरी नहीं, शिक्षा नहीं, तब तीन बच्चे का बयान क्यों?”
महत्वपूर्ण आँकड़े (Stats)
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भारत की कुल जनसंख्या (2023): 142 करोड़
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हिंदू प्रजनन दर (TFR): 1.9
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मुस्लिम प्रजनन दर (TFR): 2.4 (लगातार घटती हुई)
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मुस्लिम जनसंख्या प्रतिशत: 1951 में 9.8%, 2011 में 14.2%
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ओवैसी का संसद में बयान: “यह कानून मुसलमानों को टारगेट करने के लिए है।”
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RSS प्रमुख का बयान: “तीन बच्चे वाले परिवारों को भी समाज में सम्मान मिलना चाहिए।”
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